दर्दनाक मौत - एक मासूम की आखिरी पुकार part 2

 दर्दनाक मौत – भाग 2

(रीमा की अधूरी कहानी का अगला भाग)


रीमा की मौत ने पूरे गांव को झकझोर कर रख दिया था। जहां पहले लोग अपने बच्चों को खुले में खेलने भेजते थे, अब वहां डर का साया था। रीमा की मां सरोज दिन-रात बस यही सोचती – “क्यों मेरी बेटी के साथ ये हुआ? किसका कसूर था?”



पुलिस ने कुछ लोगों को पूछताछ के लिए उठाया, लेकिन जैसे हर बार होता है, इस बार भी पैसे और पहुंच वालों की ताकत हावी हो गई। केस ठंडा पड़ने लगा। मीडिया भी कुछ दिन बाद चुप हो गई। लेकिन सरोज नहीं रुकी।


उसने बेटी के नाम एक फाउंडेशन शुरू किया – "रीमा रक्षा अभियान"। वो गांव-गांव जाकर लड़कियों को जागरूक करने लगी, आत्मरक्षा सिखाने लगी और मां-बाप को समझाने लगी कि लड़कियों को सिर्फ घर में बंद करना समाधान नहीं है, बल्कि उन्हें मज़बूत बनाना जरूरी है।


एक दिन, सरोज को एक गुमनाम चिट्ठी मिली। उसमें लिखा था –


> “रीमा को जिसने मारा, वो गांव का ही है… और अब वो किसी और की बेटी के पीछे है।”




ये पढ़कर सरोज कांप गई, लेकिन अब वो डरने वाली नहीं थी। उसने वो चिट्ठी पुलिस को दी और साथ ही मीडिया में फिर से आवाज़ उठाई।


इस बार पूरा गांव सरोज के साथ खड़ा हो गया। रीमा की मौत अब सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन गई थी। और इस आंदोलन ने आखिर वो चेहरा सामने ला ही दिया, जिसने रीमा की जिंदगी छीन ली थी – वो कोई और नहीं, स्कूल का ही एक चपरासी निकला।


अगले दिन की हेडलाइन थी –

"रीमा को मिला इंसाफ, लेकिन क्या अब हर रीमा बचेगी?"

...... 


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