धोख़ा प्यार में
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कहानी: “पहली बार... जब भरोसा टूटा”
लेखिका की कल्पना पर आधारित — एक युवा लड़की नेहा की आपबीती
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“वो पहली बार था जब किसी ने उसके मासूम दिल को छुआ...
ना समझने की उम्र थी, ना इनकार की हिम्मत।
बस एक भरोसा था — जो उस रात हमेशा के लिए टूट गया।”
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भाग 1: गांव से शहर तक का सफर
नेहा, 16 साल की एक साधारण लड़की थी। एक छोटे से गांव से थी, जहाँ लड़कियाँ सिर्फ़ चूल्हा-चौका सीखती थीं। पर नेहा का सपना कुछ और था — पढ़ाई करना, कुछ बनना, माँ-बाबूजी को गर्व दिलाना। उसकी मां बीमार रहती थी और पिता एक किसान थे। किसी तरह 10वीं तक पढ़ाई पूरी की और फिर मामा के कहने पर उसे शहर भेज दिया गया – “अच्छी पढ़ाई होगी, जीवन सुधर जाएगा।”
शहर की रौशनी ने नेहा को चकाचौंध कर दिया। ऊँची इमारतें, चमकते कपड़े, स्मार्ट लोग… सब कुछ नया था, लेकिन कहीं न कहीं डर भी था। मामा के घर में रहकर नेहा कॉलेज जाने लगी।
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भाग 2: एक दोस्ती जो धीरे-धीरे सब बदल गई
कॉलेज में उसकी मुलाक़ात हुई अंकित से – एक स्मार्ट, हंसमुख लड़का। वह नेहा से उम्र में 4 साल बड़ा था। नेहा को लगता था कि वह बस दोस्त है, लेकिन अंकित ने धीरे-धीरे उसकी दुनिया में एक खास जगह बना ली। वो नेहा के लिए खाना लाता, नोट्स देता, बर्थडे पर गिफ्ट देता – नेहा को ऐसा लगा जैसे कोई सच में उसकी परवाह करता हो।
महीनों में नेहा उससे खुलने लगी। वो बातें जो उसने कभी किसी से नहीं की, वो अब अंकित से करती थी। “अंकित, तुम मुझे समझते हो… प्लीज़ कभी छोड़ना मत।” अंकित मुस्कुरा देता – “नेहा, तुम मेरी जान हो।”
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भाग 3: वो पहली बार…
एक दिन अंकित ने कहा — “मेरे दोस्त की बर्थडे पार्टी है, चलो साथ चलते हैं। बहुत अच्छे लोग हैं, तुम्हें पसंद आएगा।”
नेहा ने पहले मना किया, लेकिन फिर मान गई। उसे विश्वास था… “अंकित तो मेरा सबसे अच्छा दोस्त है।”
रात थी। एक फ्लैट में पार्टी चल रही थी। कुछ लोग पी रहे थे, कुछ हँसी-ठिठोली कर रहे थे। नेहा को असहज महसूस हुआ, पर अंकित ने उसका हाथ पकड़ा – “डरने की ज़रूरत नहीं, मैं हूँ ना।”
नेहा ने ठंडी कोल्ड ड्रिंक पी, लेकिन थोड़ी देर में सिर घूमने लगा।
“अंकित… मुझे अच्छा नहीं लग रहा…”
वो हँसा, “कोई बात नहीं, आओ रेस्ट करो।”
अंधेरा कमरा, बंद दरवाज़ा, कांपती हुई नेहा…
“अंकित, क्या कर रहे हो…?”
“चुप रहो नेहा, तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं?”
और फिर… सब कुछ अंधेरा हो गया।
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भाग 4: जागना और टूट जाना
सुबह आंख खुली तो नेहा अकेली थी। कपड़े अस्त-व्यस्त। शरीर में दर्द… और दिल में हज़ारों सवाल।
“क्या ये वही अंकित था जो कहता था मैं जान हूं उसकी?”
“मैंने तो सिर्फ़ भरोसा किया था…”
“क्या मेरी ग़लती थी कि मैं वहां गई?”
नेहा घर लौटी तो मामा ने कुछ नहीं पूछा। और ना ही उसने कुछ बताया। अंदर ही अंदर घुटन, दर्द और शर्म उसे खाने लगी।
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भाग 5: जब समाज ने मुंह मोड़ लिया
कुछ दिनों बाद अंकित ने उसे कॉल करना बंद कर दिया। व्हाट्सएप ब्लॉक। कॉलेज में अनदेखा।
नेहा टूट चुकी थी।
किसी से बात नहीं कर सकती थी। जब किसी दिन उसे उल्टी आई और अस्पताल गई, डॉक्टर ने कहा – “प्रेगनेंसी है 6 हफ्तों की।”
सब खत्म हो चुका था।
मामा ने उसे घर से निकाल दिया। गांव लौटने पर समाज ने उसका नाम बदल दिया — “गिरी हुई लड़की”, “काली छाया”, “कलंक”…
लेकिन क्या नेहा की कोई गलती थी?
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भाग 6: पुनर्जन्म — एक नई नेहा
नेहा आत्महत्या करने के कगार पर थी, जब एक NGO की महिला कार्यकर्ता ने उसे सहारा दिया। उन्होंने उसे जगह दी, समझाया और कहा – “तुम पीड़िता हो, गुनहगार नहीं।”
नेहा ने धीरे-धीरे खुद को फिर से खड़ा किया। बच्चे को जन्म दिया और गोद दे दिया — ताकि वो बेहतर जीवन पा सके।
अब नेहा खुद दूसरों को जागरूक करने लगी — “भरोसे के नाम पर जब भावनाओं का शोषण होता है, तो सबसे बड़ा अपराध वहीं होता है।”
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💔 अंतिम पंक्तियाँ:
> “वो पहली बार था जब उसने जाना – भरोसा सबसे खतरनाक होता है जब वो मासूमियत से जुड़ा हो।
लेकिन वो आखिरी बार नहीं था जब नेहा उठी। क्योंकि दर्द से पैदा होती है ताक़त… और ताक़त से क्रांति।”
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