दर्दनाक मौत - एक मासूम की आखिरी पुकार रीमा सिर्फ़ 17 साल की थी। एक छोटी सी उम्र, बड़े-बड़े ख्वाब और अनगिनत उम्मीदें। गांव की सीधी-सादी लड़की, पढ़ने में तेज़ और मां-बाप की लाडली। हर सुबह स्कूल जाती, किताबों से प्यार करती थी। लेकिन उसे क्या पता था कि एक दिन उसकी मासूमियत ही उसकी सबसे बड़ी दुश्मन बन जाएगी। एक शाम रीमा स्कूल से लौट रही थी। रास्ता हमेशा की तरह सुनसान और लंबा था। लेकिन उस दिन कुछ अलग था। कुछ लोग पहले से ही झाड़ियों में छिपे हुए थे। जैसे ही रीमा वहां पहुंची, उन्होंने उसे जबरदस्ती रोक लिया। रीमा चीखी, चिल्लाई, हाथ-पैर मारे, लेकिन किसी ने नहीं सुना। वो दरिंदे उसकी चीखों को दबाने में लगे थे और इंसानियत को शर्मसार कर रहे थे। उसके आंसू, उसकी पुकार सब बेकार हो गई। कुछ घंटों बाद, एक राहगीर ने रीमा की लाश को देखा – खून से लथपथ, फटी किताबें पास पड़ी थीं, और चेहरा ऐसा जैसे उसने बहुत कुछ सहा हो। पुलिस आई, लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया, लेकिन इंसाफ अब तक अधूरा है। रीमा अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी दर्दनाक मौत एक सवाल छोड़ गई – "क्या एक लड़की का सुरक्षित घर लौटना भी अब म...